PARLIAMENT Of INDIA 2021: भारत की संसद और उसके दोनों सदन लोकसभा व राज्यसभा- हमारे देश भारत में संसदीय लोकतंत्रात्मक प्रणाली को अपनाया गया है. देश के प्रशासन में संसद सर्वोच्च है. संसद राष्ट्र का प्रहरी है. भारतीय लोकतंत्र में संसद जनता की सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था है। इसी माध्यम से आम लोगों की संप्रभुता को अभिव्यक्ति मिलती है। संसद ही इस बात का प्रमाण है कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था में जनता सबसे ऊपर है, जनमत सर्वोपरि है। ‘संसदीय’ शब्द का अर्थ ही ऐसी लोकतंत्रात्मक राजनीतिक व्यवस्था है जहाँ सर्वोच्च शक्ति लोगों के प्रतिनिधियों के उस निकाय में निहित है जिसे ‘संसद’ कहते हैं।
भारत के संविधान के अधीन संघीय विधानमंडल को ‘संसद’ कहा जाता है। यह वह धुरी है, जो देश के शासन की नींव है। भारतीय संसद राष्ट्रपति और दो सदनों—राज्यसभा और लोकसभा—से मिलकर बनती है।
PARLIAMENT Of INDIA
संसद का गठन
अनुच्छेद 79 के तहत भारतीय संघ के लिए एक संसद होगी जिसमे राष्ट्रपति व दोनों सदन लोकसभा व राज्यसभा होगे. इस भारत में द्विसदनात्मक विधायिका की व्यवस्था की गयी है. संविधान सभा (विधायी) की पहली बैठक 17 नवम्बर 1947 को हुई। इसके अध्यक्ष सभा के प्रधान डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद थे। संविधान अध्यक्ष पद के लिए केवल श्री जी.वी. मावलंकर का एक ही नाम प्राप्त हुआ था। इसलिए उन्हें विधिवत चुना हुआ घोषित किया गया। 14 नवम्बर 1948 को संविधान का प्रारूप संविधान सभा में प्रारूप समिति के सभापति बी॰आर॰ अम्बेडकर ने पेश किया। प्रस्ताव के पक्ष में बहुमत था।
26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत के गणराज्य का संविधान लागू हो गया। इसके कारण आधुनिक संस्थागत ढांचे और उसकी अन्य सब शाखा-प्रशाखाओं सहित पूर्ण संसदीय प्रणाली स्थापित हो गई। संविधान सभा भारत की अस्थायी संसद बन गई। वयस्क मताधिकार के आधार पर पहले आम चुनावों के बाद नए संविधान के उपबंधों के अनुसार संसद का गठन होने तक इसी प्रकार कार्य करती रही।
PARLIRMENT से जुड़े अनुच्छेद
सरला संसद गयी.
स – संसद (79)
र – राज्यसभा (80)
ला – लोकसभा (81)
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संसद के सत्र और बैठकें
राष्ट्रपति समय समय पर PARLIRMENT के प्रत्येक सदन को बैठक के लिए आमंत्रित करता है। प्रत्येक अधिवेशन की अंतिम तिथि के बाद राष्ट्रपति को छह मास के भीतर आगामी अधिवेशन के लिए सदनों को बैठक के लिए आमंत्रित करना होता है। यद्यपि सदनों को बैठक के लिए आमंत्रित करने की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है तथापि व्यवहार में इस आशय के प्रस्ताव की पहल सरकार द्वारा की जाती है।
संसद के सत्र
सामान्यतः प्रतिवर्ष PARLIAMENT के तीन सत्र या अधिवेशन होते हैं। यथा बजट अधिवेशन (फरवरी-मई), मानसून अधिवेशन (जुलाई-अगस्त) और शीतकालीन अधिवेशन (नवंबर-दिसंबर)। किंतु, राज्यसभा के मामले में, बजट के अधिवेशन को दो अधिवेशनों में विभाजित कर दिया जाता है। इन दो अधिवेशनों के बीच तीन से चार सप्ताह का अवकाश होता है। इस प्रकार राज्यसभा के एक वर्ष में चार अधिवेशन होते हैं।
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राष्ट्रपति का अभिभाषण
नव निर्वाचित सदस्यों की शपथ के बाद अध्यक्ष का चुनाव होता है। इसके बाद, राष्ट्रपति संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में एक साथ संसद के दोनों सदनों के समक्ष अभिभाषण करता है। राष्ट्रपति का अभिभाषण बहुत महत्वपूर्ण अवसर होता है। अभिभाषण में ऐसी नीतियों एवं कार्यक्रमों का विवरण होता है जिन्हें आगामी वर्ष में कार्यरूप देने का विचार हो। साथ ही, पहले वर्ष की उसकी गतिविधियों और सफलताओं की समीक्षा भी दी जाती है। वह अभिभाषण चूंकि सरकार की नीति का विवरण होता है अंत: सरकार द्वारा तैयार किया जाता है।
अभिभाषण पर चर्चा बहुत व्यापक रूप से होती है। धन्यवाद प्रस्ताव के संशोधनों के द्वारा उन मामलों पर भी चर्चा हो सकती है जिनका अभिभाषण में विशेष रूप से उल्लेख न हो।
अध्यक्ष/उपाध्यक्ष का चुनाव
लोक सभा सदन के दो सदस्यों को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में चुनती है। कुछ ऐसी परंपरा बनी है कि उपाध्यक्ष विपक्ष के सदस्यों में से चुना जाता है। प्रायः यह कोशिश रहती है कि अध्यक्ष और उपाध्यक्ष तथा राज्यसभा में सभापति और उपसभापति का यह काम है कि वे अपने सदन की कार्यवाही को व्यवस्थित ढंग से नियमों के अनुसार चलाएं।
संसद में प्रश्न पूछना
सरकार अपनी प्रत्येक भूल चूक के लिए PARLIAMENT के प्रति और PARLIAMENT के द्वारा लोगों के प्रति उत्तरदायी होती है। सदन के सदस्य इस अधिकार का प्रयोग, अन्य बातों के साथ साथ, संसदीय प्रश्नों के माध्यम से करते हैं। संसद सदस्यों को लोक महत्व के मामलों पर सरकार के मंत्रियों से जानकारी प्राप्त करने के लिए पूछने का अधिकार होता है। जानकारी प्राप्त करना प्रत्येक गैर-सरकारी सदस्य का संसदीय अधिकार है।
संसद सदस्य के लिए लोगों के प्रतिनिधि के रूप में यह आवश्यक होता है कि उसे अपनी जिम्मेदारियों के पालन के लिए भारत सरकार के क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हो। प्रश्न पूछने का मूल उद्देश्य लोक महत्व के किसी मामले पर जानकारी प्राप्त करना और तथ्य जानना है।
दोनों सदनों में प्रत्येक बैठक के प्रारंभ में एक घंटे तक प्रश्न किए जाते हैं। और उनके उत्तर दिए जाते हैं। इसे ‘प्रश्नकाल’ कहा जाता है। इसके अतिरिक्त, खोजी और अनुपूरक प्रश्न पूछने से मंत्रियों का भी परीक्षण होता है कि वे अपने विभागों के कार्यकरण को कितना समझते हैं। प्रश्नकाल के दौरान प्रश्न पर होने वाले कटु तर्क-वितर्क से सदन का वातावरण सामान्यतः अनिश्चित होता है। कुछ प्रश्नों का मौखिक उत्तर दिया जाता है। इन्हें तारांकित प्रश्न कहा जाता है।
अतारांकित प्रश्नों का लिखित उत्तर दिया जाता है। इस काल के दौरान प्रश्नों की प्रक्रिया अपेक्षतः सरल और आसान है। चूंकि प्रश्नों की प्रक्रिया अपेक्षतः सरल और आसान है। अत: यह संसदीय प्रक्रिया के अन्य उपायों की तुलना में संसद सदस्यों में अधिकाधिक प्रिय होती जा रही है।
PARLIAMENT Of INDIA: संसद में बजट
सरकार को शासन, सुरक्षा और जन कल्याण के बहुत से काम करने होते हैं। इन सबके लिए बहुत साधन चाहिए। ये आएं कहाँ से? सरकार जनता से कर वसूलती है। जरूरत पड़ने पर कर्जे भी लेती है। क्योंकि हम संसदीय व्यवस्था में रहते हैं, सरकार के लिए यह जरूरी है कि कोई भी कर लगाने या कोई भी खर्चा करने से पहले वह संसद की मंजूरी ले। इस मंजूरी को लेने के लिए ही हर वर्ष सरकार एक बजट यानी पूरे साल की आमदनी और खर्चे का लेखा जोखा संसद में पेश करती है।
रेल बजट और सामान्य बजट अलग अलग पेश किए जाते हैं। सामान्य बजट प्रायः फरवरी के अंतिम कार्य दिवस पर लाया जाता है। रेल बजट उससे कुछ दिन पहले आ जाता है। वित्तीय वर्ष इस समय प्रत्येक साल की पहली अप्रैल से आरंभ होता है। बजट में इस आशय का प्रस्ताव होता है कि आने वाले साल के दौरान किस मद पर कितना धन खर्च किया जाना है। उसमें कितना धन किस तरीके से आएगा या कहाँ से जुटाया जाएगा।
बजट के आगामी वर्ष के लिए अनुदान दिए जाते हैं। सरकार को अपनी वित्तीय और आर्थिक नीतियों तथा कार्यक्रमों और उनकी व्याख्या करने का अवसर मिलता है। साथ ही, संसद को उन पर विचार करने और उनकी आलोचना करने का भी अवसर मिलता है।
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बजट पास करने की प्रक्रिया में PARLIAMENT के दोनों सदनों में गंभीर एवं पूर्ण चर्चा होती है। यह बजट पेश किए जाने के कुछ दिन बाद होती है। चर्चा सामान्य वाद विवाद से आरंभ होती है। यह संसद के दोनों सदनों में तीन या चार दिन तक चलती है। प्रथा यह है कि इस अवस्था में सदस्य सरकार की राजकोषीय और आर्थिक नीतियों के सामान्य पहलुओं पर ही विचार करते हैं। कर लगाने तथा खर्च के ब्यौरे में नहीं जाते। इस प्रकार सामान्य वाद विवाद से प्रत्येक सदन को अपने विचार व्यक्त करने का अवसर मिलता है।
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