Varn in Hindi: मोहन चतुर लड़का है। यह वाक्य सार्थक वाक्य है, क्योंकि इस वाक्य का अर्थ स्पष्ट है। इस वाक्य में ‘मोहन’, ‘चतुर’, ‘लड़का’ और ‘है’ चार खंड या शब्द हैं। वाक्य को शब्दों में फिर शब्दों को वर्णों में विभक्त करने के पश्चात् वर्णों (Varn in Hindi) को पुनः विभक्त नहीं किया जा सकता है। हमारे इस लेख में आप हिंदी में वर्ण के बारे में सम्पूर्ण जानकारी का अध्ययन कर सकते है, इससे जुडी प्रत्येक जानकारी को हमने यहाँ विस्तार से बताया है. अत: वर्ण की अच्छी तैयारी के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ें.
वर्ण क्या है? Varn in Hindi
परिभाषाः शब्द के उस खंड को वर्ण (Varn) कहते हैं, जिसके पुनः खंड न किए जा सकें। वर्ण को ‘मूल ध्वनि’ भी कहते हैं। वर्ण शब्द की सबसे छोटी इकाई हैं।
उदाहरणार्थ – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ ये वर्ण स्वर हैं। इसी प्रकार व्यंजन में क वर्ग में क्, ख्, ग्, घ्, ङ् तथा अन्य सभी इसी प्रकार के व्यंजन वर्ग भी वर्ण के उदाहरण हैं।
क को हम क् + अ के लघुतम रूप में देख सकते हैं, लेकिन पुनः इससे आगे इन्हें विभाजित नहीं कर सकते हैं। अतः यही छोटी से छोटी इकाई वर्ण (Varn in Hindi) है।
वर्ण का महत्व – वर्ण के योग से ही शब्द और पुनः वाक्यों का निर्माण होता है, अतः शब्द, वाक्य अथवा किसी भाषा के सही लेखन, उच्चारण एवं अर्थ ग्रहण करने में वर्ण (Varn in Hindi)का ज्ञान आवश्यक होता है।
वर्णमाला – भाषा की मूल ध्वनियों के क्रमबद्ध व्यवस्थित समूह को वर्णमाला (Alphabet) कहते हैं।
स्वरों की मात्राएँ
स्वर वर्णों को बोलने में लगने वाले समय को ‘मात्रा’ कहते हैं। अर्थात मात्रा कालमान है। यह भी माना जाता है, कि आँख की पलक झपकने में अथवा एक चुटकी बजाने में जितना समय लगता है, उसे एक मात्रा कहते हैं।
स्वर | निर्धारित मात्रा | मात्रा के प्रयोग |
अ | (कोई मात्रा नहीं) | क |
आ | (ा) | का |
इ | (ि) | कि |
ई | (ी) | की |
उ | (ु) | कु |
ऊ | (ू) | कू |
ऋ | (ृ) | कृ |
ए | (े) | के |
ऐ | (ै) | कै |
ओ | (ो) | को |
औ | (ौ) | कौ |
अं (अनुस्वार) | (.) | कं |
अः (विसर्ग) | (ाः) | (त् + अः = तः) प्रातः |
यह बात ध्यान देने योग्य है कि-
‘ऐ’ और ‘औ’ स्वर स्वतंत्र रूप में भी प्रयोग होते हैं तथा संयुक्त रूप में भी। जैसे-
‘ऐ’ का प्रयोग- मैल, बैल, फैल – (स्वतंत्र रूप में)
‘ऐ’ का प्रयोग- भैया = भ + इ + या – (भ् + अ + इ + या) (संयुक्त रूप में)
अथवा, एक व्यंजन पर भी दो मात्राओं का प्रयोग एक साथ नहीं होता है, जैसे – गाए में ‘ए’ की मात्रा ‘गा’ पर ‘गो’ नहीं लगाई जा सकती है।
वर्ण का वर्गीकरण – वर्णों के वर्गीकरण का आधार केवल मात्रा अथवा ‘उच्चारण में लगने वाले समय’ को ही माना जा सकता है। अतः वर्णों (Varn) के दो भेद हैं:- (क) स्वर (ख) व्यंजन
(स्वर) Swar Kise Kahate Hain? in Hindi
परिभाषाः जिन वर्णों(Varn in Hindi) के उच्चारण में श्वास-वायु बिना किसी रूकावट, बाधा या बिना अंगों को स्पर्श किए मुख से निकलती है, उन्हें ‘स्वर’ कहते हैं। इनका उच्चारण (pronunciation) स्वतंत्र रूप से होता है। हिंदी में निम्न स्वर हैं- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
स्वरों के भेद
स्वरों को उत्पत्ति, उच्चारण-समय तथा उच्चारण के आधार और मुख तथा ओष्ठ की आकृति के आधार पर वर्गीकृत करते हैं।
(क) उच्चारण-समय के आधार पर
(1.) ह्रस्व स्वर– जिन स्वरों के उच्चारण में एक मात्रा जितना समय लगता है, उन्हें ‘ह्रस्व’ स्वर अथवा एकमात्रिक स्वर कहते हैं। अ, इ, उ, ऋ ह्नस्व स्वर हैं। इन्हें ‘मूल’ स्वर भी कहते हैं।
(2.) दीर्घ स्वर– जिन स्वरों के उच्चारण में ह्नस्व से दुगना अर्थात् दो मात्रा का समय लगता है, उन्हें ‘दीर्घ’ स्वर अथवा द्विमात्रिक स्वर कहते हैं। आ, ई, ऊ, ऋ।
ए, ऐ, ओ, औ, दीर्घ स्वर हैं। इन्हें संधि-स्वर भी कहते हैं, क्योंकि ये दो-दो स्वरों के मेल से बनते हैं। जैसे- अ + अ = आ, अ + इ = ए, अ + उ = औ, अ + ए = ऐ आदि।
(3.) प्लूत स्वर– जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से तिगुना (3 times) अर्थात् तीन मात्रा का समय लगता है, उन्हें ‘प्लुत’ स्वर कहते हैं।
स्वरों की दीर्घता– स्वरों की दीर्घता से अर्थ-परिवर्तन हो जाता है। यह निम्न उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है-
ह्रस्व स्वर | दीर्घ स्वर |
नग | नाग |
गिर | गिरा |
जल | जाल |
मल | माल |
मिल | मील |
कल | काल |
कुल | कूल |
इस | इसी |
रज | राज |
दिन | दीन |
(ख) उत्पत्ति के आधार पर– उत्पत्ति के आधार पर स्वर दो प्रकार के होते हैंः
(1.) मूल स्वर– वे स्वर, जिनकी उत्पत्ति अन्य स्वरों से नहीं होती है, मूल स्वर कहलाते हैं। उदाहरण – अ, इ, उ, ऋ इत्यादि।
(2.) संधि स्वर – वे स्वर, जिनकी उत्पत्ति मूल स्वरों के संयोग से होती है, संधि स्वर कहलाते हैं। उदाहरण –
अ + अ = आ |
अ + ए = ऐ |
इ + इ = ई |
उ + उ = ऊ |
अ + इ = ए |
अ + उ = ओ |
अ + ओ = औ |
(ग) उच्चारण के आधार पर स्वर के भेद
उच्चारण के आधार पर स्वर दो प्रकार के होते हैं-
(1.) सानुनासिक– ये वे स्वर हैं, जिनका उच्चारण नासिका और मुख से होता है। इन्हें अनुनासिक भी कहते हैं।
(2.) निरनुनासिक– ये वे स्वर हैं, जिनका उच्चारण केवल मुख से होता है। उदाहरण- कान, पान। यहाँ ‘आ’ का उच्चारण केवल मुख से हुआ है। All Latest Govt Jobs Vacancy 2022
अनुनासिक तथा निरनुनासिक के कुछ उदाहरण –
अनुनासिक स्वर | निरनुनासिक स्वर |
अँ – सँवार, पँवार | अ – सवार, पवार |
आँ – बाँट | आ – बाट |
इँ – बिंध (ना) – बिंध | इ – गिर |
इँ – कहीं | ई – कही |
ऊँ – पूँछ | उ – उगली (उगल दी) |
ऊँ – उँगली | ऊ – पूछ |
एँ – हैं | ए – बूढ़े |
एँ – बाढ़ें | ऐ – है |
औं – गोंद | ओ – गोद |
औं – चौंक | औ – चौक |
अनुनासिक स्वरों में यदि शिरोरेखा के ऊपर अन्य कोई मात्रा का प्रयोग हो रही हो, तो अनुनासिकता के लिए चंद्रबिंदु ( ँ) का नहीं, अपितु केवल ( ं) बिंदु का प्रयोग करते हैं, क्योंकि शिरोरेखा के ऊपर अधिक स्थान नहीं होता है। जैसे – बिँध की अपेक्षा बिंध, कहीँ की अपेक्षा कहीं, चौँक की अपेक्षा चौंक
(घ) जाति के आधार पर स्वरों के भेद-
(1.) सवर्ण – जिन स्वरों के स्थान और प्रयत्न समान होते हैं, उन्हें सवर्ण स्वर कहते हैं, जैसे- अ-आ, इ-ई, उ-ऊ सवर्ण हैं।
(2.) असवर्ण – जिन स्वरों के स्थान और प्रयत्न समान नहीं होते हैं, वे असवर्ण स्वर होते हैं, जैसे- अ-इ, इ-उ, इ-उ, असवर्ण स्वर हैं।
(च) मुख की बनावट (मुखाकृति) के आधार पर
मुखाकृति के आधार पर स्वरों के निम्नलिखित भेद हैं-
- अग्र स्वर – इन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का आगे का भाग गतिशील होता है। जैसे- अ, इ, ई, ए, ऐ।
- पश्च स्वर – इन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का पीछे का भाग सक्रिय होता है। जैसे – आ, ऑ, ओ, उ, ऊ, औ।
- संवृत स्वर – इन स्वरों के उच्चारण में मुख कम खुलता है। जैसे – ई, ऊ
- अर्द्ध संवृत स्वर – इन स्वरों के उच्चारण में मुख संवृत स्वर की अपेक्षा थोड़ा अधिक खुलता है।
- विवृत स्वर (अधिक खुला हुआ) – इन स्वरों के उच्चारण में मुख अन्य सभी स्वरों की अपेक्षा अधिक खुलता है। ये स्वर हैं- आ
- अर्द्ध विवृत स्वर – इन स्वरों के उच्चारण में मुख विवृत स्वरों की अपेक्षा थोड़ा कम खुलता है।
(छ) ओष्ठाकृति के आधार पर
स्वरों के उच्चारण में होठों का विशेष आकार हो जाता है। इसी आधार पर स्वरों के निम्न भेद होते हैं-
(1.) वृत्ताकार स्वर – इन स्वरों के उच्चारण में ओष्ठ गोल आकार के हो जाते हैं। जैसे – ऊ, ओ, औ, ऑ।
(2.) अवृत्ताकार – इन स्वरों के उच्चारण में ओष्ठ गोल आकार के नहीं बनते हैं। जैसे- अ, आ, इ, ई, ए, ऐ
(व्यंजन) Vyanjan Kise Kahate Hain? in Hindi
परिभाषा: जिन ध्वनियों या वर्णों (Varn) का उच्चारण स्वतंत्र रूप में नहीं हो तथा वे स्वरों की सहायता से ही बोले जा सकते हों और उनके उच्चारण में वायु किसी रूकावट बिना स्वतंत्र रूप से मुख से बाहर निकले, उन्हें ‘व्यंजन’ कहते हैं। जैसे- क, च, ट, त, प, ह आदि।
उच्चारण के आधार पर व्यंजनों के भेद-
व्यंजनों के मुख्य तीन भेद हैं:- (1.) स्पर्श (2.) अंतस्थ (3.) ऊष्म
(1.) स्पर्श – ‘क्’ से लेकर ‘म्’ तक के 25 व्यंजनों को स्पर्श कहते हैं, क्योंकि इनको बोलते समय जीभ द्वारा वायु उच्चारण-स्थानों को छूती है, इन्हें पाँच वर्गों में बाँटा गया है-
क् | ख् | ग् | घ् | ङ् | कवर्ग |
च् | छ् | ज् | झ् | ञ | चवर्ग |
ट् | ठ् | ड् (ड़्) | ढ् (ढ़्) | ण् | टवर्ग |
त् | थ् | द् | ध् | न् | तवर्ग |
प् | फ् | ब् | भ् | म् | पवर्ग |
(2.) अंतस्थ – य्, र्, ल्, व् को अंतस्थ कहते हैं, क्योंकि ये स्पर्श वर्णों तथा ऊष्म वर्णों के अंतः (मध्य) में स्थित हैं।
(3.) ऊष्म – श्, ष्, स्, ह् को ऊष्म कहते हैं, क्योंकि इनका उच्चारण करते समय मुख से ऊष्मा (गरम श्वास-वायु) निकलती है।
संयुक्त व्यंजन – दो या अधिक व्यंजनों के मेल से ही संयुक्त व्यंजन बनते हैं। देवनागरी लिपि में चार संयुक्त व्यंजन माने जाते हैं-
क्ष = क् + ष्
त्र = त् + र्
ज्ञ = ज् + ञ
श्र = श् + र्
वर्णों के उच्चारण स्थान
ध्वनि मुख के जिन-जिन हिस्सों से टकरा कर बाहर कि ओर निकलती है, वह भाग उसका उच्चारण स्थान कहलाता है। हिंदी वर्णमाला के वर्णों (Varn) को उच्चारण स्थान की दृष्टि से 9 भागों में बाँटा गया है-
- कंठ्य वर्ण– जिन वर्णों का उच्चारण कंठ से हो, उन्हें कंठय वर्ण(Varn) कहते हैं। जैसे- अ, आ, क, ख, ग, घ, ङ्, ह तथा विसर्ग (अः)।
- तालव्य वर्ण– तालु से उच्चारित वर्णों(Varn) को तालव्य कहते हैं। जैसे- इ, ई, च, छ, ज, झ, ञ, य, श।
- मूर्धन्य वर्ण– जिन वर्णों का उच्चारण मूर्धा ( मुँह के अंदर का तालु और ऊपर के दाँतों के पीछे सिर की तरफ़ का भाग) से होता है, उन्हें मूर्धन्य वर्ण कहते हैं। जैसे – ऋ, ट, ठ, ड, ढ, ण, र, ष।
- दंत्य वर्ण– जिन वर्णों के उच्चारण में जिह्वा दांतों को स्पर्श करे, उन्हें दंत्य वर्ण(Varn) कहते हैं। जैसे- उ, ऊ, प, फ, ब, भ, म।
- ओष्ठ्य वर्ण– जिन वर्णों का उच्चारण होंठों यानी lips से किया जाए, उन्हें ओष्ठ्य वर्ण कहते हैं। जैसे- उ, ऊ, प, फ, ब, भ, म।
- नासिक्य वर्ण– जिन वर्णों का उच्चारण नासिका यानी nose से किया जाए, उन्हें नासिक्य वर्ण कहते हैं। जैसे- ङ, ञ, ण, न, म, अनुस्वार ( ं)।
- कंठ तालव्य– जो वर्ण कंठ और तालु दोनों के स्पर्श से बोले जाते हैं, उन्हें कंठ-तालव्य वर्ण(Varn) कहते हैं। जैसे- ए, ऐ
- कंठोष्ठ्य वर्ण– कंठ और ओष्ठ दोनों की सहायता से बोले जाने वाले वर्ण(Varn) कंठोष्ठ्य कहलाते हैं। जैसे- ओ, औ।
- दंतोष्ठ्य वर्ण– वे वर्ण जो दाँत और होंठ दोनों की सहायता से बोले जाते हैं, उन्हें दंतोष्ठ्य वर्ण(Varn) कहते हैं। जैसे – व
वर्ण(Varn) | उच्चारण स्थान | नाम |
अ, आ, कवर्ग (क,ख,ग,घ,ङ) ह, विसर्ग (ः) | कंठ | कंठय |
इ, ई, चवर्ग (च,छ,ज,झ,ञ) य, श | तालु | तालव्य |
ऋ, टवर्ग (ट,ठ,ड,ढ,ण), र, ष | मूर्धा | मूर्धन्य |
तवर्ग (त,थ,द,ध,न) ल, स | दांत | दंत्य |
उ, ऊ, पवर्ग (प,फ,ब,भ,म) | ओष्ठ | ओष्ठ्य |
ए, ऐ | कंठतालु | कण्ठ-तालव्य |
ओ, औ | कंठोष्ठ | कंठोष्ठ्य |
व | दंतोष्ठ | दंतोष्ठ्य |
ङ, ञ, ण, न, म (वर्गों के पंचम वर्ण) | नासिका | नासिक्य |
अनुस्वार, चंद्रबिंदु | नासिका | या अनुनासिक |
ङ, ञ, ण, न, म का उच्चारण स्थान नासिका के साथ उनके वर्गानुसार क्रमशः कंठ, तालु, मूर्धा, दंत और ओष्ठ भी होता है।
वर्णमाला में अन्य ध्वनियाँ
अयोगवाह :- हिंदी में (अं) तथा (अः) ग्यारह स्वरों के बाद में लिखे जाते हैं। इन्हें अनुस्वार ( ं) तथा विसर्ग (ः) कहते हैं, क्योंकि ये स्वतंत्र रूप में प्रयोग नहीं होते हैं; अतः स्वर भी नहीं माने जाते है, लेकिन इनका प्रयोग स्वरों के साथ होता है; अतः ये व्यंजन भी नहीं बन पाते हैं। ये अपनी ध्वनि का वहन करते हैं, परंतु योग नहीं कतरे है; अतः अयोगवाह कहे जाते हैं।
जिन शब्दों में पंचम व्यंजन का द्वित्व आता है, वहाँ अनुस्वार (anusvāra) का प्रयोग नहीं किया जाता है। उदाहरणार्थ – ‘जन्म’ में ‘न्’ औ ‘म’, जो दोनों पंचमवर्ग हैं, का द्वित्व है, अतः इसमें प्रयोग ‘जंम’ रूप में नहीं हो सकता है। अन्य उदाहरण हैंः निम्न, पुण्य, उन्नति, सम्मति, सम्मेलन आदि।
विसर्ग :- विसर्ग (ः) का प्रयोग ‘ह’ से मिलती-जुलती ध्वनि के लिए होता है। जैसे प्रातः, अतः, स्वतः, पुनः, संभवतः, दुःख आदि।
आधुनिक प्रयोग और प्रचलन के अनुसार ‘दुःख’ शब्द ‘दुख’ रूप में भी मान्य हो गया है, अतः यह अशुद्ध नहीं माना जाता है।
विसर्ग का प्रयोग संस्कृत के तत्सम शब्द, जो हिंदी में प्रयोग होते हैं, के साथ होता है। उदाहरणतया अंतःस्थ, मनःस्थिति आदि। हिंदी में विसर्ग का प्रयोग छिः शब्द में देखा जाता है।
व्यंजन-गुच्छ – जब दो या दो से ज्यादा व्यंजन एक ही बार में एक ही श्वास में बोले जाते हैं, तो उन्हें व्यंजन-गुच्छ कहते हैं- हिंदी में प्रायः दो प्रकार के ‘व्यंजन-गुच्छ’ देखे जाते हैः- (1.) व्यंजन + य + र + ल + व (2.) स + य, र, ल, व, से भिन्न व्यंजन
(1.) व्यंजन + य + र + ल + व
क् + य = क्यारी | ग् + य = ग्यारह |
क् + र = क्रम | ग् + र = ग्राम |
क् + ल = क्लेश | ग् + ल = ग्लानी |
क् + व = क्वारा | ग् + व = ग्वाला |
(2.) स + य, र, ल, व, से भिन्न व्यंजन
स् + क = स्कंध | स् + त = स्तन |
स् + त = स्तंभ | स् + ट = स्टेशन |
स् + थ = स्थान | स् + प = स्पष्ट |
स् + म = स्मारक | स् + फ = स्फूर्ति |
श् +र = श्री |
अक्षर in Hindi
किसी एक ध्वनि या ध्वनि समूह की उच्चरित छोटी-सी छोटी इकाई को, जिसका उच्चारण एक श्वास वायु से होता है, ‘अक्षर’ कहते हैं। जैसे- जी, क्या, आ आदि।
अक्षर में स्वर एक होता है, जबकि व्यंजन एक या अनेक हो सकते हैं।
हिंदी में अक्षर मुख्यतः निम्नलिखित हैं-
- केवल स्वर वाले अक्षर – ओ, आ, औ
- स्वर-व्यंजन – अब, आज। अ + ब = अब, आ + ज = आज
- व्यंजन-स्वर – न, खां, हाँ
- व्यंजन-स्वर-व्यंजन – घर्, साँप, देर्
- व्यंजन-व्यंजन-स्वर-व्यंजन – क्यों, क्या
- व्यंजन-व्यंजन-व्यंजन-स्वर – स्त्री (स् + त् + र् + ई)
- व्यंजन-व्यंजन-स्वर – प्यास (प् + य् + आ + स् + अ)
- स्वर-व्यंजन-व्यंजन – अंत
- स्वर-व्यंजन-व्यंजन-व्यंजन – अस्त्र
- व्यंजन-स्वर-व्यंजन-व्यंजन – शांत, संत
- व्यंजन-स्वर-व्यंजन-व्यंजन-व्यंजन – शस्त्र
- व्यंजन-व्यंजन-स्वर-व्यंजन-व्यंजन – प्राप्त
अक्षर-विभाजन
शब्द एकाक्षरी अर्थात एक ही अक्षर वाले भी होते हैं तथा अनेकाक्षरी भी। यद्यपि अनेकाक्षरी शब्द में दो या अधिक अक्षर होंगे, लेकिन उन सबका उच्चारण एक ही श्वास में होता है। वे अक्षर अलग-अलग नहीं बोले जाते हैं।
- एकाक्षरी शब्द – हाँ, जी, राग, कांत, शांत, भाग, आ, जा, दे, ले, पी।
- दो अक्षर वाले शब्द – खाया, खटपट, (‘खा’ तथा ‘या’ और ‘खट’ तथा ‘पट’ दो अक्षर हैं।)
- तीन अक्षरी शब्द – आइए, पपीता, इशारा (तीनों अक्षर अलग-अलग रूप में उच्चरित होते हैं।)
- चार अक्षरी शब्द – आइएगा, अनुभव (चारों अक्षर चार झटकों में उच्चरित होते हैं।)
- पाँच अक्षरी शब्द – अध्यापिकाएँ, अनुकरण।
बलाघात
बलाघात का अर्थ है, अधिक बल देना- शब्दों के उच्चारण में किसी स्वर पर ही बल होता है। बलाघात के कारण शब्द का अर्थ नहीं बदलता है। हिंदी में अक्षर के बलाघात निम्न रूपों में होते हैं-
- एकाक्षरी शब्दों में क्योंकि एक ही अक्षर होता है, अतः बलाघात भी स्वाभाविक रूप से उसी एक अक्षर पर होगा। जैसे- जो, नर, समय, जल, आज आदि।
- एक से अधिक अक्षर वाले शब्दों के यदि सभी अक्षर ह्नस्व हों तो अंतिम से पूर्व अक्षर पर बलाधात होता है। जैसे कमल में ‘म’ पर बलाघात होता है।
- तीन या चार अक्षर वाले शब्दों में बीच के दीर्घ अक्षर पर बलाघात होता है। जैसे, ‘मसाला’ और ‘समाधि’ में ‘सा’ और ‘मा’ मध्य के दीर्घ अक्षर हैं, अतः इन्हीं पर ही बलाघात भी है।
- जिन शब्दों में महाप्राण व्यंजन या ‘ह’ होते हैं, तो बलाघात इन्हीं पर होता है। जैसे कलह में ‘ह’ पर बलाघात होता है।
उदाहरणार्थ-
तुम जाओ। (रूको मत, शीघ्र जाओ) में जाओ पर बलाघात है।
आज मैं भाषण दूँगा। ‘मैं’ पर बलाघात है।
वाक्य में यदि सभी शब्दों पर बलाघात होता है, तो बलाघात का उच्चारण सही रूप में न होने पर अर्थ भी बदलता है और जिस भाव को प्रधानता देनी होती है, वह भी बदल जाता है।
बलाघात को लेखन प्रक्रिया में प्रकट नहीं किया जा सकता है। अर्थात्, यदि हम किसी शब्द, अक्षर या वाक्य पर बलाघात लिखने में अभिव्यक्त करना चाहें, तो यह संभव नहीं हो सकता है। इसकी अभिव्यक्ति उच्चारण करने अथवा बोलने से ही संभव होती है।